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सावन में भक्ति का अद्भुत दृश्य: सिर पर हुक्का लिए कावड़ लेकर निकले हरिसिंह गुर्जर, बने श्रद्धा और आस्था के प्रतीक

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मनीष बावलिया / एनसीआर संदेश /अलवर। सावन का महीना भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक बनकर हर वर्ष की तरह इस बार भी लोगों के दिलों को छू रहा है।

इसी बीच एक अनोखी और मार्मिक तस्वीर सामने आई है हिण्डोन करौली निवासी बुजुर्ग हरिसिंह गुर्जर की, जो अपने अन्य साथियों के साथ गोमुख से पैदल कावड़ लेकर रवाना हुए हैं। लेकिन जो बात उन्हें बाकी कांवड़ियों से अलग बनाती है, वह है उनके सिर पर रखा हुआ हुक्का, जिसे उन्होंने गोमुख से लेकर अभी तक बिना उतारे अपने सिर पर संतुलित कर रखा है।

हरिसिंह गुर्जर ने बताया कि उन्होंने 1 जुलाई को गोमुख से गंगाजल की कावड़ उठाई और उसी दिन से उन्होंने हुक्का सिर पर रखा है, जो अब आस्था का प्रतीक बन गया है। वे पूरे मार्ग में बिना थके, बिना रुके कंधे पर कावड़ और सिर पर हुक्का लिए चलते नजर आ रहे हैं। जब वे अलवर के रास्तों से गुजरे, तो लोग हैरान रह गए और श्रद्धा से भर उठे। उनकी यह भक्ति और संकल्प कावड़ यात्रा में एक अलग ही रंग भर रही है।

 

सावन का महीना वैसे भी भोलेनाथ की भक्ति का विशेष समय होता है। जगह-जगह से श्रद्धालु कंधे पर गंगाजल की कावड़ लेकर पैदल शिवालयों की ओर बढ़ रहे हैं। हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री जैसे तीर्थ स्थलों से कावड़िए जल लेकर अपने-अपने गांव और नगरों के शिव मंदिरों में जलाभिषेक करने आ रहे हैं। इस बार 23 जुलाई को कावड़ मंदिरों में चढ़ेगी, जब लाखों कावड़िए अपने गंगाजल को शिवलिंग पर चढ़ाएंगे।

हरिसिंह जैसे भक्त यह सिद्ध कर रहे हैं कि सच्ची श्रद्धा उम्र की मोहताज नहीं होती। सिर पर हुक्का और कंधे पर कावड़ लिए, उनका यह सफर सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक संदेश है—कि जब मन में भक्ति हो, तो शरीर थकता नहीं, रास्ते कठिन नहीं लगते, और हर क़दम भगवान की ओर बढ़ता है।

सावन के इस पावन महीने में ऐसे दृश्य समाज को श्रद्धा, संकल्प और आस्था की गहराई से जोड़ते हैं। यह सिर्फ यात्रा नहीं, एक जीवंत भक्ति कथा है, जो हर किसी के हृदय में शिव प्रेम को और अधिक प्रज्वलित कर देती है।

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